Tuesday, 2 July 2024

कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


धरहा करके लेखनी, कहिन बात ला सार।

सत के जोती बार के, दुरिहाइन अँधियार।

दुरिहाइन अँधियार, सुरुज कस संत कबीरा।

हरिन आन के पीर, झेल के खुद दुख पीरा।

एक तुला सब तोल, बताइन बढ़िया सरहा।

करिन कलह मा वार, बात कहिके बड़ धरहा।


बानी संत कबीर के, दुवा दवा अउ बान।

साधु सुने सत बात ला, लोभी तोपे कान।

लोभी तोपे कान, कहे जब गोठ कबीरा।

लोहा होवय सोन, चमक खो देवय हीरा।

तन मन निर्मल होय, झरे जब अमरित पानी।

तोड़य गरब गुमान, कबीरा के सत बानी।


जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


संत कबीर जी को सत सत नमन,

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