बाढ़न देना बर ल
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छँइहा दिही घर ल।
दुरिहाही बुखार-जर ल।
बाबू ग ! झन काट,
बाढ़न देना बर ल।
लामही खाँधा डारा।
जुरियाही पारा के पारा।
मताबोंन तिरी पासा।
चिरई-चुरगुन के होही बासा।
पंच मनके,
पंचाइत लगही।
हप्ता-हप्ता,
हॉट सजही।
डार खातू पानी,
भोगान देना जर ल।
बाबू ग ! झन काट,
बाढ़न देना बर ल।
का मयना का सुवा?
रंग रंग के चिरई आही।
झूलना बाँध देबे बाबू,
संगी संगवारी झूलाही।
नाचही चीटरा,ए डारा ले वो डारा।
कंऊवा बांटही, कांव कांव चारा।
पाना के भुर्री बारबोन,
छेरी-पठरु खाही फर ल।
बाबू ग!झन काट,
बाढ़न देना बर ल।
बन्दन वाले महाबीर रखबोन,
सकलाही सगा-सोदर।
नाच-नाच के आरती करबोन,
मढ़ाबोन लम्बोदर।
बर बिहाव बर"बर"
बड़ काम आथे।
एखरेच छँइहा म,
बारात परघाथे।
इही तो चिन्हारी ए गांव के,
जेन अलगाथे गाँव सहर ल।
बाबू ग!झन काट,
बाढ़न देना बर ल।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
एकदम जुन्ना रचना, अचानक दिखगे
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