अरविंद सवैया
हनुमान लला गुण ज्ञान कला भरदे अड़हा मन भीतर मोर।
नित हाथ म तोर रहे प्रभु मोर लगाम सहीं जिनगी रथ डोर।
सुख शांति मया सत मीत दया बरसात रबे जिनगी भर घोर।
दुख पाप छँटे मनखे न बँटे इरसा न डँटे कखरो घर खोर।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को कोरबा(छग)
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