Thursday, 11 July 2024

गीत-धर्म धजा लहराही कोन

 गीत-धर्म धजा लहराही कोन


ये कलयुग मा दीन हीन के, साथ देय बर आही कोन।

सत के रथ के बने सारथी, धर्म धजा फहराही कोन।।


करिया नाँग घलो ले बिखहर, बनगे हावैं मनखे आज।

स्वारथ खातिर फुस्कारत हें, बेच-भाँज डारे हें लाज।

सबे ललावैं मंद माँस बर, दूध दही घी खाही कोन।

सत के रथ के बने सारथी, धर्म धजा फहराही कोन।।


रास बिना नइ रास आय कुछु, गोप गुवालिन हें परसान।

बुचवा होगे बर कदम्ब रुख, सबे उधौ बन बाँटैं ग्यान।।

गोरा रंग रँगत हें मनखे, करिया किसन कहाही कोन।

सत के रथ के बने सारथी, धर्म धजा फहराही कोन।।


बिन ग्वाला के गाय गरू अउ, बिन मुरली के मधुबन रोय।

दाता तरसे दार भात बर, देखावा के पूजा होय।

सुख सुविधा तज दनुज दलन बर,कंस नगरिया जाही कोन।

सत के रथ के बने सारथी, धर्म धजा फहराही कोन।।


कौरव मन हर गरजत हावैं, धन अउ बल के बल मा रोज।

फिरैं मिलावत हाँ में हाँ सब, बन दरबारी खा पी बोज।

सच्चा हावैं तिंखर न्याय बर, दूत बने बतियाही कोन।

सत के रथ के बने सारथी, धर्म धजा फहराही कोन।।


छल प्रपंच होवत हे भारी, अँधरा के सिर मा हे ताज।

हाँसत हवै दुशासन हिहि हिहि, चुपे चाप हें सभा समाज।

पापी मनके गरब तोड़ के, दुरपति लाज बचाही कोन।

सत के रथ के बने सारथी, धर्म धजा फहराही कोन।।


अधमी घर के छप्पन मेवा, तज के खाही भासी भात।

कोन विधुर ला गला लगाही, कोन रही रण मा दिन रात।

धरम करम के हाथ काँपही, गीता श्लोक सुनाही कोन।

सत के रथ के बने सारथी, धर्म धजा फहराही कोन।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

No comments:

Post a Comment