गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
पैदा होवत पर निकलगे।
फूल के बिन फर निकलगे।1
बाहिरी मा खोज होइस।
चोर घर भीतर निकलगे।2
दू भुखाये लड़ते रहिगे।
पेट तीसर भर निकलगे।3
सर्दी अउ खाँसी जनम के।
आज बड़का जर निकलगे।4
घुरघुरावत जी रिहिस बड़।
हौसला पा डर निकलगे।5
गाय गरुवा मन घरे के।
सब फसल ला चर निकलगे।6
जेन ला समझेन दाता।
साँप वो बिखहर निकलगे।7
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
No comments:
Post a Comment