Tuesday, 2 July 2024

बइसाख

 ........🍧बइसाख🍧.......

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बिहनिया ले बिक्कट , बियापे बइसाख |

तरिया-नरवा के पानी ल ,चट-चट,चॉंटे  बइसाख |


देख  के  दंद , देह  दुबरागे |

तावा कस तात-तात, भुइयाँ लागे|

डारा-पाना घलो, हलत नइहे|

थोरकिन तको हवा,चलत नइहे|

फागुन के माते मात खागे,

रोये सब; त अकेल्ला हॉसे बइसाख...|

बिहनिया ले बिक्कट,बियापे बइसाख |


किंजरइया खुसरगे, कुरिया भीतरी|

कतको सजे धजे ,लगे झीथरा-झीथरी|

खेंवन-खेंवन ,टोंटा सुखाय |

जुड़ चीज , बड़ मन भाय |

लकलकात घाम,चारो खुंट बॉटे बइसाख|

बिहनिया ले बिक्कट, बियापे बैईसाख...|


छत के घर घलो,सपनाये छानी |

छँइहा अऊ पानी खोजे,जम्मो परानी|

चलत हे झॉंझ-झोला,उड़त हे बरोड़ा |

भुइयाँ के जम्मो परानी,बनगे हवे होरा|

तात पानी म बोर चुरोना,सबला कॉंचे बइसाख|

बिहनिया ले बिक्कट , बियापे बइसाख.........|


                 जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                     बाल्को(कोरबा)

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