........🍧बइसाख🍧.......
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बिहनिया ले बिक्कट , बियापे बइसाख |
तरिया-नरवा के पानी ल ,चट-चट,चॉंटे बइसाख |
देख के दंद , देह दुबरागे |
तावा कस तात-तात, भुइयाँ लागे|
डारा-पाना घलो, हलत नइहे|
थोरकिन तको हवा,चलत नइहे|
फागुन के माते मात खागे,
रोये सब; त अकेल्ला हॉसे बइसाख...|
बिहनिया ले बिक्कट,बियापे बइसाख |
किंजरइया खुसरगे, कुरिया भीतरी|
कतको सजे धजे ,लगे झीथरा-झीथरी|
खेंवन-खेंवन ,टोंटा सुखाय |
जुड़ चीज , बड़ मन भाय |
लकलकात घाम,चारो खुंट बॉटे बइसाख|
बिहनिया ले बिक्कट, बियापे बैईसाख...|
छत के घर घलो,सपनाये छानी |
छँइहा अऊ पानी खोजे,जम्मो परानी|
चलत हे झॉंझ-झोला,उड़त हे बरोड़ा |
भुइयाँ के जम्मो परानी,बनगे हवे होरा|
तात पानी म बोर चुरोना,सबला कॉंचे बइसाख|
बिहनिया ले बिक्कट , बियापे बइसाख.........|
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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