कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
देवारी त्यौहार के, होवत हावै शोर।
मनखे सँग मुस्कात हे, गाँव गली घर खोर।
गाँव गली घर खोर, करत हे जगमग जगमग।
होवय पूजा पाठ, परे सब माँ लक्ष्मी पग।
लइका लोग सियान, सबे झन खुश हे भारी।
दया मया के बीज, बोत हावय देवारी।
भागे जर डर दुःख हा, छाये खुशी अपार।
देवारी त्यौहार मा, बाढ़े मया दुलार।।
बाढ़े मया दुलार, धान धन बरसे सब घर।
आये नवा अँजोर, होय तन मन सब उज्जर।
बाढ़े ममता मीत, सरग कस धरती लागे।
देवारी के दीप, जले सब आफत भागे।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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