मनखे मन के करनी के फल- सार छंद
छोट बड़े सब जीव जंतु बर, बेरा हे मरनी के।
फल ला भोगत हावय फोकट, मनखें के करनी के।।
चिरई चिरगुन मरे घाम मा, नइहे पेड़उ पानी।
लहकत हावय बानर भालू, हलाकान जिनगानी।
बोहय बन विकास के गंगा, धारा बैतरनी के।
छोट बड़े सब जीव जंतु बर, बेरा हे मरनी के।।
धरती दाई के छाती मा, छड़ सीमेन्ट छभागे।
माटी के सेउक मन मरगे, उद्योगी हरियागे।।
इंच इंच ला चाँट खात हें, चटनी कस बरनी के।
छोट बड़े सब जीव जंतु बर, बेरा हे मरनी के।।
आज जनम धर काली मरगे, जीव जंतु मन कतको।
कोनो जुग मा नइ देखें हन, निरदई मनखें अतको।।
स्वारथ बर सरलग माते हे, लूट पाट धरनी के।
छोट बड़े सब जीव जंतु बर, बेरा हे मरनी के।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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