....किसन्हा आसिक.....
हव मय आसिक ऑव,
माटी महतारी के|
नागंर बैला गाड़ी के|
पईली काठा खॉड़ी के|
रापा गैंयती कुदारी के|
करथो मया खॉटी,
खाथो नून बासी|
रहिथो वइसने जइसे
दल म रेगें चॉटी|
भूलागे भोंभरा,
चुंहगे छानी|
कसके छय महिना
अब चलही किसानी|
अब न बात होही,
न मुलाखात होही..........|
जेन भी होही,
किसानी के बाद होही....|
चुक्ता दिन खेत म बीते,
रतिहा सिरिफ खटिया दिखे|
कोनो अगोरे,
चाहे कोनो हाथ जोरे|
किसन्हा अपन,
खेती ल नई छोंड़े|
न बिरस्पत मिलौ,
न ईतवार मिलौ |
न आसाढ़ मिलौ,
न कुवार मिलौ |
न दिन मिलबोन
न रात मिलबोन..................|
मिलबोन त अब
किसानी के बाद मिलबोन.....|
सुतत उठत बईठत
ऑखी म खेतीखार दिखे|
मेहनत के कलम ले किसन्हा
संसार के भाग लिखे |
न घर बर टेम हे,
न बन बर टेम हे|
न काली टेम हे
न आज..................|
टेम मिलही
त किसानी के बाद....|
त चल मया ल,
एकमई होन दे..................|
फेर पहिली बावत बियासी,
अउ लुवई होन दे...............|
जीतेन्द्र वर्मा
खैरझिटी (राज.)
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