भाजी चरोटा के
भूख भगाय बर पोटा के
खाय हन भाजी चरोटा के ||
उसन परिया निथार,
अम्मट नहीं ते दार डार,
रांधे दाई चून के।।
लहसुन, मिरचा के फोरन म,
तेल - नून संग भूंज के ।।
ममहाय घर खोर हाँड़ी,
चरोटा के राहय बड़ पुछारी ।।
फेर आजकल तो दिखे नहीं,
अउ दिखथे त बइरी हे टोंटा के ।
भूख भगाय बर पोटा के ।
खाय हन भाजी चरोटा के ।।
बदलत जमाना संग,
चरोटा तिरयागे ।
अपने - अपन उपजइया,
कतकोन भाजी सिरागे ||
नइ बताबे ता,
कोनो जानही घलो नही ।
अउ बताबे ता,
खाय् कहिके मानही घलो नहीं ।।
पहिली भाजी ल माने,
गरीबहा कोटा के |
भूख भगाय बर पोटा के ।
खाय हन भाजी चरोटा के ।।
लड़ नइ सकिस चरोटा ह
गुमी, मुस्कैनी, अमारी, चेंच, बोहार कस ।
तेखरे सती ओखर किस्मत,
नइ पहुँचिस बाजार तक ।
ठाढ़े महँगाई के आँच म
तिजोरी झोर कस अँउटत हे ।
आलू,गोभी,मटर बहुत होगे,
मनखे फेर भाजी डहर लहुटत हे ।
रांध के भाजी,
झडकत हें सब तीन परोसा के ।
भूख भगाय बर पोटा के ।
खाय हन भाजी चरोटा के ||
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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