बरसा
मोरो मन नाचिस मंजुरी कस|
चुचवइस जब बादर ले रस |
देख पानी टपकई,फोटका परई,
झमाझम बिजुरी,अउ गरजई घुमरई।
पानी अऊ पूर्वा के मितानी,
डबरा अऊ घुरवा के मितानी,
कोठ म बोहाय रेला अऊ
टिपटिप चूंहे छॉनी||
सुन मैना के गुत्तुर बानी अऊ
बोली कँउवा के करकस.....|
मोरो मन नाचिस...............
..............................रस||
मन ह उड़ात हे बदरा संग,
सॉप डेड़हू निकलगेहे अदरा संग|
भंदई म चिखला जमके चिपके हे,
उमड़-घुमड़ बदरा रही रही के टिपके हे|
लइकामन झड़ी म
कूदकूद के भींगत हे|
नेवन्निन बहु
कुरिया म नींगत हे|
मिठात हे बबा ल,
कुनकुन सनहन पेज लसलस...|
मोरो मन .......................रस|
मुंदरहा ले ओहो तोतो अऊ
बाजे खनन खनन घंटी|
सब कीरा मकोरा ल रौंदत हे
चाहे पिहरे राहय कंठी|
बेंगुवा अऊ झिंगरा
उत्ता-धुर्रा गॉवत हे|
हॉट-बाजार नही
खेतखार मन भावत हे|
बॉवत रे बियासी रे
भॉजी रे पाला रे|
रोहों पोंहों परे हे
सिधोव काला काला रे|
माई पिला निकले हे
कोनो बुता नइ बॉचे|
भुंइया हरियाय हे
डारापाना नाचे |
तहूं गा सुवा - ददारिया
यदि मॉटी पूत अस......|
मोरो मन ..............रस|
जीतेन्द्र वर्मा
खैरझिटी(रॉजनॉदगॉव
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