कुंडलियाँ छंद-मुँगेसा
खाजी पहली के हरे, खाय तउन गुण गाय।
जाने लइका आज नइ, रँग रँग के जे खाय।
रँग रँग के जे खाय, मुँगेसा ला का जाने।
ददा दई तक आज, टोरके घर नइ लाने।।
मिले कहूँ ता खाव, मिठाथे फर अउ भाजी।
शहर लगे ना गाँव, रहै पहली के खाजी।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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