करलई किसान के
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तुंहर कोती के पानी ल,
हमरो कोती भेज।
देख न ग करलई हे,
सुखा गेहे खेत।
एक तो ताग-ताग,
जामे हे धान।
उपरहा म टरटर ले,
ताने हे घाम।
भुंईयॉ जरत हे देख।
धान मरत हे देख।
एसो फेर मोर सपना,
होरी जरत हे देख।
अइसने म कइसे खवाहूँ,
लइका-लोग ल बासी-पेज।
तुंहर कोती के पानी ल,
हमरो कोती भेज।
बिन बरसे बईरी बादर,
भगा जात हे।
भगवान के भरोसा म,
किसान ठगा जात हे।
जांगर ल खपा सकथन।
दुख-पीरा ल बता सकथन।
बादर बईरी हे त का करव?
भईगे मुड़ी ल ठठा सकथन।
नई दिखे दुख-पीरा ओला,
घेरी - बेरी दुखाथे चोला।
रोवाथे रोज धानपान ल लेज।
तुंहर कोती के पानी ल,
हमरो कोती भेज।
बइठे - बइठे मेड़ म,
ताकत हंव बादर ।
घर म गोसईन,
आरती करत हे आगर।
कतको सपना टूट गे मोर।
आँसू ऑखिच म सुगगे मोर।
डोली - डंगरी ल हंरिया दे बादर,
संसो-फिकर म जिनगी डूबगे मोर।
पानी भर तो माँगत हंव,
कहॉ माँगत हंव सुपाती-सेज ?
तुंहर कोती के पानी ल,
हमरो कोती भेज।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795
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