Thursday, 25 July 2024

सागर मंथन कस मन मथदे(कुकुभ छंद)

 सागर मंथन कस मन मथदे(कुकुभ छंद)


सागर मंथन कस मन मथके, मद महुरा पी जा बाबा।

दुःख द्वेस जर जलन जराके, सत के बो बीजा बाबा।


मन मा भरे जहर ले जादा, नइहे कुछु अउ जहरीला।

येला पीये बर शिव भोला, देखादे तैंहर लीला।

सात समुंदर घलो मथे मा, विष अतका नइ तो होही।

जतका मनखे मन कर हावय, देख तोर अन्तस रोही।

बड़े  छोट  ला घूरत  हावय, साली  ला जीजा बाबा।

सागर मंथन कस मन मथके, मद महुरा पी जा बाबा।


बोली भाँखा करू करू हे, मार काट होगे ठट्ठा।

अहंकार के आघू बइठे, धरम करम सत के भट्ठा।

धन बल मा अटियावत घूमय, पीटे मनमर्जी बाजा।

जीव जिनावर मन ला मारे, बनके मनखे यमराजा।

दीन  दुखी  मन  घाव  धरे  हे, आके  तैं सी जा बाबा।

सागर मंथन कस मन मथके, मद महुरा पी जा बाबा।


धरम करम हा बाढ़े निसदिन, कम होवै अत्याचारी।

डरे  राक्षसी  मनखे  मनहा, कर तांडव हे त्रिपुरारी।

भगतन मनके भाग बनादे, फेंक असुर मन बर भाला।

दया मया के बरसा करदे, झार भरम भुतवा जाला।

रहि  उपास  मैं  सुमरँव तोला, सम्मारी  तीजा  बाबा।

सागर मंथन कस मन मथके, मद महुरा पी जा बाबा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


जय भोले,,भगवान भोला सबके आस पुराये💐💐

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