रामराज
राम राम कहि हाथ जोड़हीं, पाछू छुरी चलाही।
बता भला अइसन मा कइसे, राम राज हा आही।
बचन ददा दाई के बिरथा, बिरथा गुरु के बानी।
अपने मन के काम करैं सब, होरा भूंजैं छानी।।
भाई भाई लड़त मरत हें, काय जमाना आगे।
स्वारथ के चक्कर मा फँसके, अपने अपन खियागे।।
काय बने अउ का हे गिनहा, तेला समझ न पाही।
बता भला अइसन मा कइसे, राम राज हा आही।।
अहंकार मा सबे चूर हें, जप तप सत नइ जाने।
धन दौलत ला अपने माने, मनखें मन ला आने।।
अपन ठउर के रचना खातिर, पर के नेंव गिरायें।
रक्सा कस सब मनखें होगे, जीव मार के खायें।।
छोड़ सुमत अउ सत के रद्दा, झगरा रोज मताही।
बता भला अइसन मा कइसे, राम राज हा आही।।
कोन तियागे राज सिंहासन, कोन बने बनवासी।
पर के दुःख क्लेश हरे बर, कोन बिगाड़े रासी।।
बानर भालू खग के सँग मा, कोन ह बदे मितानी।
खुदे पियासे रहिके कउने, पर ला देवैं पानी।।
पर के बाँटा घलो नँगा के, तीन तेल के खाही।
बता भला अइसन मा कइसे, राम राज हा आही।।
बिन स्वारथ के सेवा करही, कोन बने बजरंगी।
अंगद कस अब दूत मिले नइ, न सुग्रीव कस संगी।।
भेदभाव ला कोन तोड़ही, कोन ह हरही पीरा।
कोन बुराई सँग मा लड़ही, तजके घरबन हीरा।।
हाँहाकार मचाही रावण, कुंभकरन अँटियाही।
बता भला अइसन मा कइसे, राम राज हा आही।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
No comments:
Post a Comment