बरसात -जीतेंन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"(शिव छंद)
घन घनन घनन करे। सन सनन पवन करे।
नीर रझ रझा झरे। खेत खार सर भरे।
चंचला चमक चमक। तेज धर तमक तमक।
नाचथे असाड़ मा। बन नदी पहाड़ मा।
खोंच खाँच भर नही। बाँध खेत घर नही।
लब लबाय हे सबे। नइ रहे खुशी दबे।
घन उमंग जाँचथे। पेड़ पात नाँचथे।
हो जथे दही मही। सुख समाय तब सही।
जोगनी जुगुर जुगुर। बड़ बरे बुगुर बुगुर।
मेचका टरर टरर। रट लगाय रात भर।
झींगुरा थके नही। कान सुन पके नही।
मोरनी मटक मटक। लेय मन मया झटक।
काम धाम गे हबर। जुट किसान गे जबर।
हल चले धरा उपर। आस धर मया चुपर।
ओह तो किसान के। गीत हा मितान के।
गूँजथे सबे डहर। मन करे लहर लहर।
नान नान छोकरा। का जवान डोकरा।
हाँस हाँस गात हे। भींग मेंछरात हे।
रेंगथे छपक छपक। पाँव ला चपक चपक।
गाँव खेत खार मा। घर गली दुवार मा।
बीज भात तरमरा। फोड़ फाड़ के धरा।
झाँकते फुहार मा। तर धरा हे धार मा।
रंग धर हरा हरा। मुच मुचाय सज धरा।
जीव शिव हवै मगन। फेंक फाँक दुख अगन।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
No comments:
Post a Comment